सेवा नियमावली की खुलेआम अनदेखी, कार्रवाई में देर —
कम्पोजिट विद्यालय गनेशपुर प्रकरण ने शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर उठाए सवाल
चकिया (चंदौली)। बीआरसी चकिया अंतर्गत कम्पोजिट विद्यालय गनेशपुर में प्रधानाध्यापक एवं दो सहायक अध्यापकों द्वारा शिक्षक सेवा नियमावली तथा विभागीय निर्देशों के खुले उल्लंघन का गंभीर मामला सामने आया है। आरोप है कि एबीएसए चकिया द्वारा बार-बार निर्देश देने एवं बैठक कराने के बावजूद संबंधित प्रधानाध्यापक के आचरण में कोई सुधार नहीं हुआ और विभागीय कार्यों की लगातार अवहेलना की जाती रही।
जांच में पकड़ी गई लापरवाही
शिक्षा विभाग की जांच में स्पष्ट हुआ कि—
चिकित्सीय अवकाश और उपार्जित अवकाश स्वीकृत करना प्रधानाध्यापक के अधिकार क्षेत्र में नहीं है, इसके बावजूद प्र0प्र0अ0 द्वारा सहायक अध्यापकों के अवकाश आवेदन स्वीकृत किए गए।
जांच वाले दिनों में ही ऑनलाइन चिकित्सा अवकाश आवेदन किया गया और उसे स्वीकृति भी दी गई, जो स्पष्ट तौर पर अनुशासनहीनता व नियम उल्लंघन माना गया।
सहायक अध्यापक की अनुपस्थिति के दिन चिकित्सकीय अवकाश दर्शाकर उपस्थिति समायोजित करने की कोशिश सामने आई।
इन अनियमितताओं को लेकर इसे शिक्षक सेवा नियमावली का घोर उल्लंघन बताया गया है।
निलंबन की संस्तुति, लेकिन कार्रवाई शून्य
खंड शिक्षा अधिकारी (एबीएसए) चकिया द्वारा लगभग दो माह पूर्व प्रधानाध्यापक सहित दो सहायक अध्यापकों के निलंबन हेतु संस्तुति सहित आख्या बीएसए कार्यालय चंदौली भेजी गई, लेकिन हैरत की बात यह है कि दो माह गुजर जाने के बाद भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
दोषियों को बचाने के आरोप
सूत्रों के अनुसार,
बीएसए सचिन कुमार कार्यालय चंदौली पर दोषी शिक्षकों को बचाने के प्रयास के आरोप लग रहे हैं। फाइलें आगे न बढ़ाकर मामला दबाने का संदेह जताया जा रहा है।
सीडीओ ने लिया संज्ञान
मामले की जानकारी मिलने पर मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) चंदौली ने बीएसए से रिपोर्ट लेकर प्रकरण की स्थिति स्पष्ट करने का आश्वासन दिया है।
शिक्षा विभाग में हड़कंप
प्रधानाध्यापक व दो सहायक अध्यापकों पर निलंबन की संस्तुति सार्वजनिक होते ही पूरा शिक्षा विभाग हिल गया है। अब सभी की निगाहें प्रशासन की कार्रवाई पर टिकी हैं—
क्या सत्ता संरक्षण के चलते मामला दबा दिया जाएगा?
या फिर दोषियों पर कानून सम्मत निलंबन की कार्रवाई होगी?
बड़ा सवाल
यह पूरा मामला शिक्षा व्यवस्था में जवाबदेही और पारदर्शिता पर गंभीर प्रश्न खड़ा करता है। यदि स्पष्ट जांच रिपोर्ट व संस्तुति के बावजूद कार्रवाई न हो, तो यह संकेत देता है कि नियम सिर्फ कागज़ों तक सीमित रह गए हैं।
अब देखना यह है कि प्रशासन नियम तोड़ने वालों पर सख़्ती करता है या सिस्टम एक बार फिर दोषियों को बचाकर अपनी साख पर दाग लगाता है।








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