स्वच्छ भारत मिशन की पोल खोलता पचफेरिया का सामुदायिक शौचालय, जिम्मेदारों पर उठे सवाल
प्रधान–सेक्रेटरी की लापरवाही से पंचायत की छवि धूमिल, ग्रामीण नाराज़
चकिया/पचफेरिया। स्वच्छ भारत मिशन के तहत ग्रामीण क्षेत्र को खुले में शौच मुक्त बनाने के लिए सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, लेकिन पचफेरिया ग्राम पंचायत में निर्मित सामुदायिक शौचालय इन प्रयासों की खुली अवहेलना करता दिख रहा है। वर्षों से बंद पड़े और बदहाल इस शौचालय ने पंचायत प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
शौचालय के बाहर दीवार पर केयरटेकर और प्रभारी के मोबाइल नंबर जरूर लिखे हैं, लेकिन ग्रामीणों के अनुसार इन नंबरों पर संपर्क करने पर कोई जवाब नहीं मिलता। ग्राम प्रधान और सेक्रेटरी की उपेक्षा और निगरानी के अभाव में यह सुविधा केवल कागजों में चल रही है, जबकि जमीनी हकीकत इसके बिल्कुल उलट है।
ग्रामीणों का कहना है कि शौचालय का निर्धारित टाइम सुबह 5 से 7 बजे तक है, लेकिन महीनों से यह समय-सारणी केवल दीवार पर टंगी दिखती है—शौचालय अधिकांश दिनों में बंद रहता है। पानी की व्यवस्था खराब, दरवाजे टूटे, बदबू से भरा परिसर और साफ-सफाई का नामोनिशान नहीं। ऐसे हालात में ग्रामीण, खासकर महिलाएँ और बुजुर्ग, मजबूरी में खुले में शौच करने को विवश हैं।
ग्रामीणों ने साफ कहा है कि प्रधान और सेक्रेटरी की लापरवाही एवं मिलीभगत के कारण सामुदायिक शौचालय की देखभाल पूरी तरह ठप हो गई है, जबकि सरकार की ओर से इसके संचालन और मेंटिनेंस के लिए नियमित धनराशि जारी होती है। इसके बावजूद ग्राम पंचायत स्तर पर न तो निरीक्षण होता है और न ही किसी प्रकार की जवाबदेही तय की जाती है।
इस मामले पर पूछे जाने पर एडीओ पंचायत नारायण दत्त तिवारी ने स्वीकार किया कि पचफेरिया का सामुदायिक शौचालय मुख्य मार्ग पर स्थित है और इसकी स्थिति ठीक नहीं है। उन्होंने आश्वासन दिया कि जल्द ही जांच कर कार्यवाही की जाएगी।
ग्रामीणों ने जिला प्रशासन से मांग की है कि
शौचालय की बदहाल स्थिति के लिए जिम्मेदार प्रधान और सेक्रेटरी के खिलाफ कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।
शौचालय संचालन की वास्तविक जाँच कर रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए।
ग्रामीणों को स्वच्छ सुविधा उपलब्ध कराने के लिए तत्काल मरम्मत व नियमित संचालन सुनिश्चित किया जाए।
सरकारी योजनाओं का लाभ तभी मिलता है जब स्थानीय स्तर पर ईमानदारी से काम हो। पचफेरिया का यह मामला दिखाता है कि जिम्मेदारों की निष्क्रियता किस तरह जनता की बुनियादी जरूरतों को ठप कर देती है।





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