मनरेगा में भ्रष्टाचार: शहाबगंज ब्लॉक के ठेकहा गांव में फर्जीवाड़े से मजदूरों का हक मारा गया, केवल कागजों पर दिख रहे भारी भरकम मजदूर
शहाबगंज। योगी सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति और केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी मनरेगा योजना की जमीनी हकीकत शहाबगंज ब्लॉक के गांवों में सवालों के घेरे में है। क्षेत्र के दर्जनों गांवों में मनरेगा कार्यों में खुलेआम फर्जीवाड़ा और भ्रष्टाचार सामने आ रहा है।
सूत्रों के मुताबिक, ब्लॉक स्तर पर कार्यों की पूर्ति दिखाने के लिए एक जैसी पुरानी तस्वीरों को अलग-अलग योजनाओं में चस्पा कर दिया जाता है। यही नहीं, असली मजदूरों की जगह गांव के चहेते लोगों के नाम फर्जी मनरेगा मजदूर के तौर पर दर्ज कर दिए जाते हैं। खंड विकास अधिकारी, एपी मनरेगा और रोजगार सेवकों की मिलीभगत से यह खेल वर्षों से जारी है।
स्थानीय कर्मियों ने खुलासा किया कि जैसे ही मजदूरी का भुगतान कच्चे मजदूरों के खाते में होता है, उसके बाद रोजगार सेवक तय हिस्से की वसूली कर लेते हैं। आरोप है कि इस पूरी प्रक्रिया में गांवों के जेई और तकनीकी सहायकों की भी सीधी मिलीभगत रहती है। मनरेगा की हर योजना में बांटकर कमीशन खाने का खेल चलता है और शिकायतें भी अक्सर फाइलों में ही दबा दी जाती हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि ब्लॉक प्रमुख प्रतिनिधि से जो भी कार्य निकलते हैं, उनमें भ्रष्टाचार खुलेआम किया जाता है। गांव के एक किसान रामलाल यादव ने बताया, “हम लोग मजदूरी के लिए सुबह से शाम तक खेतों में पसीना बहाते हैं, लेकिन कागजों पर हमारा नाम ही नहीं होता। कुछ लोगों के नाम पर फर्जी हाजिरी लगाकर भुगतान उठा लिया जाता है। असली मजदूरों को सिर्फ धोखा मिलता है।”
गांव की ही एक महिला मजदूर सुनीता देवी ने कहा, “रोजगार सेवक और अधिकारी लोग फोटो में हमसे काम तो दिखाते हैं, लेकिन पैसे आधे-अधूरे ही मिलते हैं। बाकी का हिस्सा ऊपर तक चला जाता है। अब तो हमें मनरेगा पर भरोसा ही नहीं रहा।”
शहाबगंज के ठेकहा गांव में एक समाजसेवी ने इस भ्रष्टाचार को उजागर किया है। उनका कहना है कि कार्यों की हाजिरी रजिस्टर में महिलाओं के नाम तो दर्ज होते हैं लेकिन फोटो खींचते समय पुरुष मजदूरों को खड़ा कर दिया जाता है। इससे यह साबित होता है कि योजनाओं में न केवल फर्जीवाड़ा हो रहा है बल्कि महिलाओं के अधिकारों की भी अनदेखी की जा रही है।
इस मामले पर जब डीसी मनरेगा से बात की गई तो उन्होंने कहा कि “मनरेगा में भ्रष्टाचार को लेकर कोई समझौता नहीं किया जाएगा। मामले की जांच कर जिम्मेदारों पर कड़ी कार्रवाई होगी।”
फिलहाल, शहाबगंज ब्लॉक के कई गांवों में यह मामला चर्चा का विषय बना हुआ है। ग्रामीणों का कहना है कि यदि जल्द ही उच्चस्तरीय जांच नहीं हुई तो असली मजदूरों का हक इसी तरह मारा जाता रहेगा और मनरेगा जैसी योजनाओं की विश्वसनीयता पर सवाल उठते रहेंगे।










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