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Tuesday, September 16, 2025

नकली दवाइयों से जान का खतरा, सरकार बेपरवाह क्यो ? हर चौथी दवा नकली या घटिया

 नकली दवाइयों से जान का खतरा, सरकार बेपरवाह क्यो ? हर चौथी दवा नकली या घटिया







भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत पहले से ही चुनौतीपूर्ण है, लेकिन नकली और घटिया दवाइयों का बढ़ता कारोबार अब सीधे लोगों की जान पर बन आया है। हालिया रिपोर्टों और घटनाओं से साफ है कि यह समस्या अब सिर्फ कानून व्यवस्था का नहीं, बल्कि जनस्वास्थ्य और नैतिक जवाबदेही का भी सवाल बन चुकी है।


 एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बिक रही लगभग 25% दवाएं नकली या घटिया है !

- बुखार, डायबिटीज, कैंसर और ब्लड प्रेशर जैसी गंभीर बीमारियों की दवाएं भी इस जाल में शामिल हैं।

- इनमें कई दवाएं ऐसी हैं जिनमें औषधीय तत्वों की मात्रा या तो बेहद कम होती है या बिल्कुल नहीं

- मरीजों की हालत सुधरने के बजाय बिगड़ती जाती है, और कई बार यह जानलेवा साबित होती है।





यूपी में ड्रग ऑफिस की झोल से खुल रही सरकार की पोल


उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं और ड्रग नियंत्रण प्रणाली की स्थिति चिंताजनक होती जा रही है। हाल के महीनों में नकली दवाओं, प्लेटलेट्स और मादक पदार्थों की तस्करी के मामलों ने न केवल ड्रग ऑफिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं, बल्कि सरकार की निगरानी और जवाबदेही को भी कठघरे में खड़ा कर दिया है।


नकली दवाओं का जाल: स्वास्थ्य व्यवस्था पर संकट


समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने हाल ही में आरोप लगाया कि यूपी में नकली प्लेटलेट्स और दवाओं का रैकेट सक्रिय है। प्रयागराज और आगरा में ऐसे मामले सामने आए हैं जहां नकली दवाएं खुलेआम बिक रही थीं !

- यह दर्शाता है कि ड्रग ऑफिस की निरीक्षण प्रणाली या तो निष्क्रिय है या भ्रष्टाचार में लिप्त है।

- स्वास्थ्य विभाग पर दलाली और मुनाफाखोरी के आरोप लग रहे हैं।


ड्रग माफिया का बोलबाला: पूर्वांचल से वेस्ट यूपी तक फैला नेटवर्क

एक रिपोर्ट के अनुसार, पूर्वांचल में गांजा और पश्चिम यूपी में हेरोइन, अफीम और चरस की सबसे ज्यादा मांग है।

- बरेली और सहारनपुर जैसे शहर ड्रग्स के नए हब बन चुके हैं।

- इंटरनेट फार्मेसी और कूरियर के जरिए फार्मा ड्रग्स की सप्लाई हो रही है- 

- लखनऊ, आगरा और वाराणसी जैसे शहर साइकोट्रोपिक ड्रग्स की खपत में सबसे आगे- 




मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ड्रग माफिया के खिलाफ सख्त रुख अपनाया फिर भी हाल बेहाल


- एंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स (ANTF) का गठन किया गया है।

- डार्क वेब पर सक्रिय तस्करों को पकड़ने के लिए साइबर विशेषज्ञों की मदद ली जा रही है।

- लेकिन सवाल यह है कि इतनी बड़ी समस्या फिर भी हाल जस का तस..


सरकारी अस्पतालों तक पहुंच रहीं नकली दवाएं

एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, *महाराष्ट्र, यूपी, झारखंड और छत्तीसगढ़* जैसे राज्यों में सरकारी अस्पतालों को नकली दवाएं सप्लाई की जा रही थीं !

- इन दवाओं में टैल्कम पाउडर और स्टार्च मिला पाया गया, जबकि उनमें कोई औषधीय रसायन नहीं था।

- यह सीधे तौर पर सरकारी तंत्र की विफलता और निगरानी की कमी* को दर्शाता है।




सरकार की चुप्पी और सुस्त कार्रवाई

हालांकि केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने कुछ सर्वे किए हैं, लेकिन

- *कोई ठोस नीति या सख्त कार्रवाई सामने नहीं आई* 

- *लाइसेंस रद्द करने या फैक्ट्रियों पर छापे* जैसी कार्रवाई बेहद सीमित और देर से होती है।


जनता की सेहत और अर्थव्यवस्था दोनों पर असर

नकली दवाएं न सिर्फ मरीजों की जान को खतरे में डालती हैं, बल्कि

- इलाज का खर्च बढ़ाती हैं

- कामकाज की क्षमता घटाती हैं

- और देश की आर्थिक उत्पादकता पर भी नकारात्मक असर डालती हैं।


अब और चुप्पी नहीं चलेगी


नकली दवाओं का मुद्दा अब सिर्फ स्वास्थ्य का नहीं, बल्कि नैतिक और प्रशासनिक जवाबदेही का है !


ड्रग ऑफिस की झोल और सरकार की सुस्त प्रतिक्रिया ने जनता के बीच अविश्वास पैदा कर रहा है


- अगर ड्रग माफिया प्रदेश भर में सक्रिय हैं, तो यह प्रशासनिक विफलता का संकेत है।

- सरकार को पारदर्शिता, तत्परता और जवाबदेही के साथ काम करना होगा, वरना जनता का भरोसा टूटता रहेगा

सरकार को चाहिए कि वह

- *सख्त कानून बनाए*,

- *निगरानी तंत्र को मजबूत करे*,

- और जनता को जागरूक करने के लिए अभियान चलाए।


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