लापरवाही से टूटा बहेलिया बंधी का तटबंध, किसानों की मेहनत डूबी पानी में,विभागीय लापरवाही पर उठे सवाल
चकिया (रामपुर गांव)। किसानों के लाख फरियादों और शिकायतों के बावजूद बंधी डिवीजन के अधिकारियों की अनदेखी आखिरकार भारी पड़ गई। चकिया तहसील के अंतर्गत रामपुर गांव स्थित बहेलिया बंधी का तटबंध रविवार की देर रात लगातार बारिश के दबाव में टूट गया। इस घटना ने न सिर्फ किसानों की मेहनत को पानी में बहा दिया, बल्कि विभागीय उदासीनता और भ्रष्टाचार की पोल भी खोल दी।
किसानों की चेतावनी को किया गया नजरअंदाज
रामपुर, खोरी, जगदीशपुर और आसपास के कई गांवों के किसान लंबे समय से बहेलिया बंधी की जर्जर हालत को लेकर आवाज उठा रहे थे। उनका कहना था कि बंधी का तटबंध कई जगह से धंस गया है और बरसात के मौसम में इसके टूटने का खतरा हमेशा बना रहता है। किसानों ने कई बार बंधी डिवीजन के अधिकारियों को लिखित और मौखिक रूप से अवगत कराया, लेकिन उनकी शिकायतों पर ध्यान देने के बजाय उन्हें टाल दिया गया।
गांव के किसान शिवलाल ने बताया— “हम लोग महीनों से गुहार लगा रहे थे कि बंधी की मरम्मत कराई जाए, लेकिन विभागीय अधिकारी हर बार बजट और प्रक्रिया का हवाला देकर हमें चुप करा देते रहे। अब जब बंधी टूटी है, तो हमारी धान की पूरी फसल पानी में डूब गई।"
लगातार बारिश बनी मुसीबत
पिछले कई दिनों से क्षेत्र में हो रही लगातार बारिश ने बंधी पर दबाव बढ़ा दिया। रविवार की शाम अचानक तटबंध का एक बड़ा हिस्सा धंस गया और देखते ही देखते बंधी का पानी खेतों में भरने लगा। रातभर पानी फैलता रहा और सुबह तक कई गांवों की सैकड़ों बीघा फसल पूरी तरह जलमग्न हो गई। किसान बेबस होकर अपनी फसल को डूबते देखते रह गए।
किसानों की मेहनत पर पानी
धान की नर्सरी से लेकर रोपाई और खाद–पानी में किसानों ने इस बार भारी मेहनत की थी। उम्मीद थी कि इस सीजन की फसल अच्छी होगी और कर्ज से थोड़ी राहत मिलेगी। लेकिन तटबंध टूटने से किसानों की मेहनत पर पानी फिर गया। जिन खेतों में धान की फसल लहलहा रही थी, वहां अब सिर्फ पानी का अथाह सागर नजर आ रहा है।
किसान रामाश्रय का कहना है— “हमने खाद और बीज उधार लेकर खरीदा था। अब खेत में कुछ बचा ही नहीं। यह नुकसान सिर्फ फसल का नहीं, बल्कि हमारे पूरे परिवार के जीवन का है। हमें नहीं पता कि आगे कैसे गुजारा होगा।”
प्रशासन हरकत में
घटना की जानकारी मिलते ही उपजिलाधिकारी मौके पर पहुंचे। उन्होंने बंधी के टूटे हिस्से का जायजा लिया और तत्काल राहत कार्य शुरू कराने के निर्देश दिए। मौके पर जेसीबी और मजदूर लगाकर तटबंध को बांधने का काम तेज गति से शुरू किया गया है। उपजिलाधिकारी ने किसानों को भरोसा दिलाया कि उनकी हानि का आकलन कर मुआवजा उपलब्ध कराया जाएगा।
हालांकि किसानों का कहना है कि जब तक बंधी की स्थायी मरम्मत और मजबूती का कार्य नहीं होगा, तब तक हर साल यही स्थिति बनती रहेगी।
विभागीय लापरवाही पर उठे सवाल
बहेलिया बंधी का रखरखाव और मरम्मत बंधी डिवीजन की जिम्मेदारी है। ग्रामीणों का आरोप है कि अधिकारी सिर्फ कागजों में काम दिखाकर खानापूर्ति कर रहे हैं। बजट आने के बाद भी मरम्मत कार्य टाला जाता है और बरसात में स्थिति बेकाबू हो जाती है।
सामाजिक कार्यकर्ता राकेश मिश्रा कहते हैं— “हर साल बंधी मरम्मत के नाम पर लाखों रुपये का बजट पास होता है। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि बंधी जस की तस पड़ी रहती है। इसका सीधा मतलब है कि भ्रष्टाचार और लापरवाही ने किसानों को बरबादी के कगार पर ला दिया है।”
किसानों का गुस्सा और प्रशासन पर दबाव
बंधी टूटने की खबर फैलते ही आस-पास के गांवों के किसान मौके पर जुट गए। कई किसानों ने प्रशासन और विभागीय अधिकारियों के खिलाफ नारेबाजी की। उनका कहना था कि अगर समय रहते मरम्मत हो गई होती, तो यह नौबत ही न आती। गुस्साए किसानों ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही मुआवजा और ठोस कार्रवाई नहीं हुई, तो वे आंदोलन करने को मजबूर होंगे।
मुआवजे और राहत का इंतजार
फिलहाल प्रशासनिक स्तर पर नुकसान का आंकलन शुरू हो चुका है। राजस्व टीम गांव-गांव जाकर किसानों की फसल का विवरण जुटा रही है। लेकिन किसानों को चिंता है कि सिर्फ कागजी सर्वे से उन्हें वास्तविक राहत नहीं मिलेगी। उनका कहना है कि उन्हें तत्काल आर्थिक सहायता की जरूरत है, क्योंकि पूरी फसल नष्ट हो चुकी है और अगली बुआई की संभावना भी खतरे में पड़ गई है।
स्थायी समाधान की मांग
किसानों ने मांग की है कि बंधी की मरम्मत सिर्फ अस्थायी पैचवर्क से न की जाए। बंधी को मजबूत और स्थायी रूप से तैयार किया जाए ताकि भविष्य में दोबारा ऐसी स्थिति न बने। साथ ही, दोषी अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाए और लापरवाही पर सख्त कार्रवाई की जाए।
बहेलिया बंधी का तटबंध टूटना सिर्फ एक तकनीकी गड़बड़ी नहीं, बल्कि विभागीय उदासीनता और लापरवाही का परिणाम है। किसानों की चेतावनी और गुहार को अनदेखा कर अधिकारियों ने जो लापरवाही दिखाई, उसका खामियाजा आज गांव-गांव के किसान भुगत रहे हैं। यह घटना एक बार फिर सवाल खड़ा करती है कि आखिर किसानों की आवाज कब सुनी जाएगी और कब तक उनकी मेहनत यूं ही पानी में बहती रहेगी।










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