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Friday, September 18, 2020

सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार विनोद दुआ की गिरफ्तारी पर रोक के अगली सुनवाई 24 सितंबर तक बढ़ाया

नई दिल्ली:- सुप्रीम कोर्ट हिमाचल प्रदेश में पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ दर्ज एफआईआर को निरस्त करने की मांग वाली याचिका पर 24 सितंबर को सुनवाई करेगा। शुक्रवार को विनोद दुआ के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने वाले शिमला के भाजपा नेता की ओर से महेश जेठमलानी और केंद्र सरकार की ओर से एएसजी एसवी राजू ने अपनी दलीलें रखीं। सुनवाई के दौरान जेठमलानी ने सुप्रीम कोर्ट के 31 मार्च के उस आदेश का हवाला दिया जिसमें प्रवासी मजदूरों को लेकर आदेश दिया गया है। उस आदेश में मीडिया कवरेज को लेकर जो आदेश दिया गया है उसका विनोद दुआ ने उल्लंघन किया है। उन्होंने कहा कि यह सच है कि फर्जी खबरों की वजह से मजदूरों में डर फैल गया और वे बड़ी तादाद में अपने घर जाने लगे। जेठमलानी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जिस दिन आदेश दिया था उसी दिन विनोद दुआ ने पोडकास्ट किया था और कहा था कि लोग हेल्थ वर्कर्स पर पत्थर फेंक रहे हैं। उन्होंने कहा कि इसकी गंभीरता को देखने की जरुरत है, ये लोग कौन थे। जब आप ये कह रहे हैं कि ‘लोग कह रहे हैं, तो ये एक अफवाह होती है। अगर यह खबर सही है तो ये ब्राडकास्ट गलत है और ऐसे में विनोद दुआ हिंसा फैलाने के दोषी हैं। वे लोगों को सरकार की ओर से चलाए जा रहे क्वारेंटाईन सेंटर जाने से रोक रहे थे।

जेठमलानी ने 1 जून के ब्राडकास्ट का ट्रांसक्रिप्ट पढ़ते हुए कहा कि हर दृष्टिकोण से विनोद दुआ ने झूठ बोला। उन्होंने कहा कि दुआ ने नागरिक अवज्ञा की बात कहकर लोगों की भावनाओं का शोषण किया। जेठमलानी ने कहा कि सुदर्शन टीवी के मामले में कोर्ट ने टीवी चैनल्स के फंडिंग के स्रोत को सार्वजनिक करने को कहा था। ये मामला अभी चल रहा है। केंद्र सरकार की ओर से एएसजी एसवी राजू ने कहा कि पत्रकारों और मीडिया को विशेष अधिकार नहिं है। क्षेत्राधिकार नहीं होने के बावजूद पुलिस एफआईआर दर्ज करने से मना नहीं कर सकती है। इस मामले में आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 188 का उपयोग किया गया है। उन्होंने कहा कि हिंसा की कोशिश या उसके लिए उकसाने की कोशिश भी संज्ञेय अपराध है, भले ही हिंसा न हुई हो। राजू ने कहा कि पत्रकार प्रोफेशनल्स नहीं होते हैं। प्रोफेशनल होने के लिए मुवक्किल से संबंध होना चाहिए लेकिन पत्रकारों का कोई मुवक्किल नहीं होता है।

इस मामले में शिमला पुलिस पहले ही अपनी जांच रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में दाखिल कर चुकी है। पिछले 7 जुलाई को कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश सरकार को निर्देश दिया था कि वो विनोद दुआ पर दर्ज एफआईआर में अब तक हुई जांच के दस्तावेज दाखिल करें। कोर्ट ने विनोद दुआ की गिरफ्तारी पर लगी रोक को भी बढ़ा दिया था। सुनवाई के दौरान विनोद दुआ की ओर से वकील विकास सिंह ने कहा था कि केंद्र सरकार की आलोचना करने के चलते उन्हें परेशान किया जा रहा है। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर हम दुआ की दलील से सहमत हुए तो एफआईआर रद्द कर देंगे। कोर्ट ने कहा था कि विनोद दुआ को हिमाचल पुलिस के पूरक प्रश्नों के उत्तर देने की जरुरत नहीं है। विनोद दुआ की याचिका पर पिछले 14 जून को सुनवाई करते हुए केंद्र और हिमाचल प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया था। जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने दो हफ्ते में जवाब देने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने दुआ की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। विनोद दुआ के खिलाफ शिमला में बीजेपी के एक नेता ने देशद्रोह का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज करवाई है। शिमला पुलिस ने विनोद दुआ को पूछताछ के लिए तलब किया है।

बता दें कि दिल्ली में भी उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है। पिछले 11 जून को दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली में विनोद दुआ के खिलाफ दर्ज एफआईआर के मामले में जांच पर अगले आदेश तक रोक लगा दी थी। दिल्ली में विनोद दुआ पर बीजेपी के प्रवक्ता नवीन कुमार ने एफआईआर दर्ज कराई है। एफआईआर में विनोद दुआ पर अपने यूट्यूब चैनल के जरिये झूठी सूचना देने और सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाने का आरोप लगाया गया है। एफआईआर में कहा गया है कि विनोद दुआ ने दिल्ली दंगों को लेकर अपने शो में वैमनस्य फैलाने का काम किया है। इससे कोरोना के संकट के दौरान लोगों के बीच सद्भाव खत्म होने की आशंका है। आपको बता दें कि दिल्ली की ट्रायल कोर्ट ने पिछले 10 जून को विनोद दुआ को अग्रिम जमानत दे दी थी।

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