चकिया/ चंदौली वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए लगातार लॉकडाउन में विद्यालय बंद होने के कारण हमारे समाज के बच्चे अपने सुरक्षा व अधिकार से वंचित हो रहे जिसमें अधिकांश मूसहर समुदाय के बच्चे जिनके पास शिक्षा का एकमात्र सहारा सरकारी विद्यालय है और विद्यालय बंद है जिसके कारण उन्हें स्कूली शिक्षा,खेल और दोपहर का भोजन नहीं मिल पा रहा है एक और जबकि निजी स्कूल मोबाइल के माध्यम से शिक्षा दे रहे हैं, इन बच्चों को सरकार द्वारा शिक्षित करने की कोई व्यवस्था नहीं है ऐसे में इन बच्चों की शिक्षा एक बड़ी चुनौती है ।कोरोना वायरस के सामाजिक आर्थिक प्रभाव और परिणाम स्वरूप होने वाले प्रभाव लंबे समय तक रहेंगे और बच्चों पर इसका प्रभाव अलग-अलग तरीकों से होगा एक अत्यंत गरीबी और परिणामी अभाव में जाएगी। पहले ही शिक्षा की पहुंच एक संकट है और अंत में स्वास्थ्य और पोषण सेवाओं का टूटना हो सकता है। मुसहर और वियर समुदाय के बच्चे शिक्षा से ड्रॉपआउट होने बाल श्रम में जाने के प्रबल खतरे में है
1- लॉकडाउन के पहले 70% बच्चे रोजाना जा रहे थे विद्यालय 2 - लॉकडाउन के दौरान केवल 20 बच्चे प्राप्त कर रहे ऑनलाइन शिक्षा 30% बच्चे हुए ड्रॉपआउट, 56.40% बच्चे मध्यान भोजन के स्थान पर मुफ्त राशन व डीबीटी प्राप्त कर रहे हैं 3- 20% बच्चे अधिकतर मुसहर समुदाय के बच्चे ने अपने माता-पिता की कृषि में भट्टे पर बकरी पालन छोटे-छोटे व्यवसाय इत्यादि में काम करना शुरु कर दिए हैं
4- सर्वेक्षण के दौरान देखा गया कि मुख्यत: मुसहर समुदाय की 60% से 70% परिवारों ने गैर संस्थागत स्रोतों से उच्च ब्याज दर पर कर्ज लिया है इसके कारण परिवार में चिंता है कि बच्चे स्कूल में नहीं है और उन पर उच्च स्तर का कर्ज है इसलिए उन्हें अपने बच्चों को काम में लगाना पड़ सकता है
5-- 80% बच्चे ने सरकारी विद्यालय में आगामी शिक्षा के लिए किताबें तो प्राप्त की है परंतु ज्यादातर लगभग 90% मुसहर समुदाय के बच्चे उन किताबों का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि उसे हर बच्ची को किताबों को पढ़ाने वाला कोई नहीं है
उपर्युक्त आंकड़ा ह्यूमन लिबर्टी नेटवर्क की पार्टनर संस्था मानव संसाधन एवं महिला विकास संस्थान एवं आजाद शक्ति अभियान द्वारा पूर्वी उत्तर प्रदेश के 4 जिलों वाराणसी भदोही चंदौली व मिर्जापुर के 7 ब्लॉक सहित 40 गांव में FGD के माध्यम से सर्वेक्षण किया गया जिसमें कुल 27541 घरों व 45 प्राथमिक विद्यालय व 40 माध्यमिक विद्यालय को शामिल किया गया सर्वेक्षण में 6 से 18 वर्ष के कुल 23986 (लड़की 13766 लड़का 10220) बच्चे को कवर किया गया अध्ययन में यह पाया गया कि गांव स्तर बाल श्रम की निगरानी समिति जैसे ग्राम बाल संरक्षण समिति व विद्यालय प्रबंध समिति जो मुख्य रूप से बच्चों के लिए सुरक्षा तंत्र बनाने के लिए जिम्मेदार है उन समिति के पास कोई योजना नहीं है कि यदि बच्चे विद्यालय नहीं जा रहे हैं तो उनको कैसे सुरक्षा तंत्र में रखें और उन्हें काम के लिए बाहर जाने लिए रोक सके
आजाद शक्ति अभियान की सरकार से मांग--
- सरकार को उस और समुदाय के बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था (जैसे मुसहर बस्तियों में बच्चों को दूर-दूर बैठाकर बैचवाइज माईकिग व्यवस्था कर )शुरू करनी चाहिए, जिले में बैंक अधिकारियों, खंड शिक्षा अधिकारी ,जिला शिक्षा अधिकारी के साथ संबंधित मुद्दे पर एक अभियान चलाया जाना चाहिए जिसमें इस समस्या को हल करने के लिए शिक्षा विभाग द्वारा विद्यालय प्रबंधक समिति को अनिवार्य रूप से निर्देशित किया जाना चाहिए, बाल श्रम से बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और बच्चों की शिक्षा के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करने के लिए सरकार द्वारा ग्राम बाल संरक्षण समिति व विद्यालय प्रबंधक समिति की सक्रियता के लिए तत्काल एक दिशा निर्देश जारी किया जाना चाहिए, सरकार द्वारा ग्राम बाल संरक्षण समिति पंचायत को निर्देश करना चाहिए कि ग्राम स्तर पर माइग्रेशन रजिस्टर बनाया जाए और नाबालिग( 18 वर्ष से कम उम्र का कोई बच्चा) अकेले या समूह में यात्रा न कर सके यह सुनिश्चित करना चाहिए और जिम्मेदारी ग्राम प्रधान की जानी चाहिए


No comments:
Post a Comment